भोर के आकाश का गुलाबी वितान
लोरी सी लगती कोयल की तान
हवा में हल्की सी सिहरन,
ज्यों किया हो अभी अभी स्नान
कंबल की गर्माहट
माँ के स्पर्श के समान।
आज दुनिया इधर की उधर होने दो
जो पाते हों वे पाएँ,
मुझे खोने दो
नींद की वाटिका में
स्वप्न के बीज बोने दो
अभी कुछ पल और
मुझे सोने दो़।।
I'm learning real skills that I can apply throughout the rest of my life...Procrastinating and rationalizing.
~Calvin
4 comments:
it reminds me of Tare Zameen Par movie's kid...this poem is cool n reminds me of bed :P
That's an interesting thought. See you in dream land :)
hehehehe ...i dint meet u there ...
I did look out for you. you must have wandered elsewhere. :)
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