Raag-Viraag
some silent observations
Sunday, August 14, 2011
कविता
ज़ेहन
में
एक
कविता
थी
,
शायद
सो
गयी
है
रोज़मर्रा
कारोबार
के
ढेर
में
कहीं
खो
गयी
है
छंद
के
छल्ले
जीवन
के
बोझ
तले
बिखर
गए
हैं
छंद
हीन
कविता
निर्वस्त्र
सी
रो
गयी
है
!
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